Priyanka06

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लेखनी कहानी -27-Apr-2022 तस्वीर

रचीयता-प्रियंका भूतड़ा

शीर्षक-तस्वीर

पूछा मैंने चित्रकार से,
क्या बना रहे हो तुम?
कहां चित्रकार ने
बना रहा हूं एक तस्वीर

चित्र देख चित्रकार की
झिलमिल हो उठी आंखें
ऐसा लग रहा था जैसे
धरती पर कोई अप्सरा आई हो

शीश पर टीका नाक में नथनी
आंख में काजल होठों पर लाली 
पारदर्शी स्वर्णिम आंचल में
 झलमल रूप निखर रहा था

हाथ  के कंगन, पाव के नूपुर
जैसे मानो रुनझुन संगीत बज रहा था
अप्सरा में मोहिनी की झलक दिखला रहा था
एक नारी की वेदना को बतला रहा था

पर कुछ देर के बाद देखा हमने क्या
माथे पर आंचल  खिसक गया हो जैसे
यह क्या बयान कर गई तस्वीर
मस्तक पर थी चिंतन रेखाएं भाग्य की
नथनी ऐसे लग रही थी जैसे परवशता की बेरी हो
आंखों के सैलाब में तैर रहे हो टूटे सपने
होठों पर थी जैसे एक झूठी हंसी
पाव के रुनझुन से
जैसे निकल रहा था उसका रुदन

कहां उसने चित्रकार से
क्या यह सब तुम नहीं देख पाए
उसकी प्रतिमा में दिखाई गई है उसकी विवशता
फिर क्यू किया तूने यह अनसुना
क्यों बनाई तूने ऐसी तस्वीर
जिसमें नारी जकड़े बेड़ियो में।

सप्ताह की सातवी कविता

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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

28-Apr-2022 08:29 PM

बहुत खूबसूरत

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Zainab Irfan

27-Apr-2022 09:05 PM

Very nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

27-Apr-2022 02:55 PM

वाह 👏👏👌👌👌👌🙏🏻🙏🏻

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